अशोक विजयादशमी और दशहरा क्या हैं?
*"इस लेख को सिर्फ वो ही पढ़ें, जो डॉ अम्बेडकर साहब को अपना उद्धारक, मार्गदर्शक और आदर्श मानते हैं, बाकी ब्राह्मणों के अंधविश्वास के गुलाम इस लेख को ना पढ़ें"*
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*अशोक विजयादशमी और दशहरा क्या हैं?*
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*"दशहरा मनाकर अपने पूर्वजों का अपमान ना करें"*
*"अशोक विजयादशमी मनाइए, दशहरा नहीं"*
*"भारत के मूलनिवासी बौद्ध थे और हैं जिनके पूरखों को ब्राह्मणों ने गुलाम बनाकर शूद्र, अछूत और आदिवासी बना दिया था"*
*"और बाद में ब्राह्मणों ने अपना राजपाट स्थापित करने के लिए इनको हिंदू बना दिया"*
*"आज के एससी+एसटी+ओबीसी ही वास्तव में तत्कालीन बौद्धों की वर्तमान संतानें हैं"*
*"ब्राह्मणों ने बौद्धों के पूर्वजों को हराकर गुलाम बना लिया था और अशोक विजयादशमी के बजाय उन्हें दशहरा मनाने के लिए मजबूर कर दिया था"*
*"इसीलिए आपका पर्व अशोक विजयादशमी है, दशहरा नहीं"*
*"दशहरा आपके पूर्वजों की हार का प्रतीक है, जबकि अशोक विजयादशमी आपके पूरखों की जीत का प्रतीक है"*
*"हिंदू धर्म का उल्लेख किसी भी धर्म ग्रंथ में नहीं है और सर्वोच्च न्यायालय के मुकदमा संख्या 291/1971 के निर्णय दिनांक 16 सितम्बर, 1976 के अनुसार हिंदू कोई धर्म नहीं है, केवल जीवन शैली है"*
*"हिंदू का मतलब तो गुलाम होता है, इसीलिए तुम्हें ये ब्राह्मणवादी हिंदू यानि गुलाम बोलते हैं तथा ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य खुद को सनातनी बोलते हैं, हिंदू नहीं"*
*"डॉ अम्बेडकर साहब ने हिंदू धर्म इसीलिए तो छोड़ा था क्योंकि इसके अंदर बौद्धों को शूद्र, अछूत और आदिवासी के नाम पर गुलाम बना दिया गया था"*
*"ब्राह्मणों ने बौद्धों को कमजोर करने के लिए इनको पहले तो तीन टुकड़ों में बांट दिया, पहला शूद्र, दूसरा अछूत और तीसरा आदिवासी और फिर उसके बाद इन तीन टुकड़ों के भी 6743 टुकड़े करके छोटी-छोटी जातियाँ बना दी"*
*"बाबा साहब ने बौद्धधम्म 14 अक्टूबर, 1956 को खासतौर पर अशोक विजयादशमी के ऐतिहासिक अवसर पर इसीलिए अपनाया था ताकि भारत के मूलनिवासी जो आज संवैधानिक रूप से एससी, एसटी, ओबीसी जाने और पहचाने जाते हैं, वो रावण का पुतला ना फूंककर अशोक विजयादशमी का पर्व मनाएं"*
*क्योंकि*
*"अशोक विजयादशमी आपके पूर्वजों की जीत का प्रतीक है, जबकि दशहरा आपके पूर्वजों की हार का प्रतीक है"*
*"जिस प्रकार से संविधान लिखकर डॉ अम्बेडकर साहब ने एससी, एसटी,ओबीसी को सभी मानवाधिकार देकर असमानतापूर्ण व भेदभावपूर्ण अत्याचारों से कानूनन आजादी दिलाई थी, ठीक उसी प्रकार से बाबा साहब ने बौद्धधम्म ग्रहण करके एससी, एसटी,ओबीसी को जातीय छुआछूत और अत्याचारों से मानसिक रूप से आजाद होने का मार्ग प्रशस्त किया था"*
*"इसीलिए अशोक विजयदशमी पर बाबा साहब द्वारा रचित 22 प्रतिज्ञाओं का वाचन जरूर करें"*
👁️आइए, एक नजर अशोक विजयादशमी से विजयादशमी और विजयादशमी से दशहरे तक के इतिहास पर डालते हैं :----
*अशोक विजयादशमी क्या है?*
अशोक विजयादशमी का इतिहास भारत के सबसे शक्तिशाली राजा चक्रवर्ती सम्राट अशोक के ऐतिहासिक शासनकाल से जुड़ा हुआ है। सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध में 261 ई. पूर्व विजय प्राप्त करने के बाद दस दिनों तक विजयोत्सव मनाने की योजना बनाई थी,
जब उनके दरबार में एक बौद्धभिक्खू आये तो सम्राट अशोक ने उन्हें आग्रहपूर्वक बैठने की विनती की तो बौद्धभिक्खू ने कहा कि आप मेरे साथ कलिंग युद्ध के मैदान में चलिए। जब सम्राट अशोक को बौद्धभिक्खू ने लाखों लाशों की ओर इशारा करते हुए कहा कि यह तुम्हारी विजय नहीं है, बल्कि हार है जिसमें किसी का पति, तो किसी का बेटा, तो किसी का भाई मारा गया है और उनके घरों में मातम आपके कारण है जिसके जिम्मेदार सिर्फ तुम हो तो सम्राट अशोक ने इस पर पछतावा करते हुए बौद्धभिक्खू से क्षमायाचना की और शेष जीवन में मानव हितार्थ लोककल्याणकारी कार्य करने का प्रण करते हुए हिंसा को हमेशा के लिए छोड़ने का संकल्प लिया।
इसके बाद दसवें दिन सम्राट अशोक ने परिवार सहित बौद्धधम्म ग्रहण करके सभी को समता, समानता, मानवता का संदेश दिया
और
इस प्रकार सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध की विजय मनाने के बजाय हिंसा पर अहिंसा की विजय का पर्व दस दिन मनाया और इसके बाद से इसे प्रत्येक वर्ष *"अशोक विजयादशमी"* के रूप में मनाया जाने लगा।
*दशहरा क्या है?*
दशहरे का सीधा-सा मतलब है कि दस को हराना यानि भारत में चन्द्रगुप्त मौर्य से लेकर बृहद्रथ तक 10 मूलनिवासी बौद्ध राजाओं चंद्रगुप्त मौर्य, बिंदुसार, अशोक, कुणाल, दशरथ, संप्रति, शालिशुक, देवधर्मवर्मन, सतामधानु, बृहद्रथ का 323 ई. पूर्व से 185 ई. पूर्व तक 137 साल का मौर्यकालीन यानि बौद्धकालीन शानदार शासन रहा जिसका राजा बृहद्रथ का ब्राह्मण सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने राजा बृहद्रथ की हत्या करके अंत कर दिया था। इस मौर्यकालीन युग को ही इतिहास में *सोने की चिडिया यानि स्वर्ण युग कहते हैं।* सम्राट अशोक ने अपने शासनकाल में *23 विश्वविद्यालय* बनवाए थे जिनमें *तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला, कंधार* आदि शामिल थे। इनमें विदेशी छात्र भी पढ़ने आते थे, इसीलिए *भारत को मौर्यकाल में शिक्षा के क्षेत्र में विश्वगुरु भी कहते थे।* जिस प्रकार से आज भी एससी, एसटी, ओबीसी वर्ग के लोगों से ब्राह्मणवादी जातीय नफरत करते हैं, उसी प्रकार से उस वक्त भी भारत के मूलनिवासियों से ब्राह्मणवादी नफरत किया करते थे, परन्तु उस वक्त मूलनिवासियों की वर्तमान जातीय नहीं थीं। सभी बौद्ध थे।
*एक दिन मौर्य साम्राज्य के अंतिम राजा बृहद्रथ के ब्राह्मण सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने मौका देखकर बृहद्रथ राजा की हत्या कर दी और स्वयं को राजा घोषित कर दिया।*
मौर्य साम्राज्य खत्म करके ब्राह्मणवादी राज्य स्थापित करने की खुशी में ब्राह्मणवादी राजा पुष्यमित्र शुंग ने *अशोक विजयादशमी* की जगह *विजयादशमी* और बाद में उसका नामकरण दस राजाओं को हराने के कारण *दशहरा* कर दिया गया।
चूंकि चन्द्रगुप्त मौर्य से लेकर बृहद्रथ तक 10 मौर्य राजाओं का शासनकाल था और इन दस राजाओं के शासन को हराने की खुशी में *"10+हरा = दशहरा"* मनाने के लिए एक पुतला बनाकर व उस पर 10 मौर्य राजाओं के चेहरे की तस्वीरें लगाकर प्रत्येक वर्ष जलाना प्रारम्भ कर दिया जो बौद्धकालीन मौर्य राजाओं की हार और ब्राह्मणवादी राजा पुष्यमित्र शुंग की जीत का प्रतीक था।
जबकि किसी भी ब्राह्मणवादी ग्रंथ में दस सिर वाले राजा के होने का कोई उल्लेख नहीं है कि किसी राजा के दस सिर थे?
अतः यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि *दशहरा ब्राह्मणों की जीत और मूलनिवासी बौद्धकालीन मौर्य राजाओं की हार का प्रतीक है,*
*जबकि अशोक विजयादशमी सम्राट अशोक की हिंसा पर अहिंसा की जीत का प्रतीक है।*
_*अशोक विजयादशमी पर्व की शुरुआत 261 ई.पूर्व हुई थी और दशहरे की शुरुआत 185 ई. पूर्व हुई थी।*_
_दोनों घटनाओं में 75 साल का अंतर है अर्थात दोनों घटनाएं अलग-अलग घटित हुई हैं।_
*जहां अशोक विजयादशमी भारत के मूलनिवासियों बौद्धों का पर्व है तो दशहरा विदेशी आर्यों अर्थात ब्राह्मणों का पर्व है।*
इसीलिए सच्चाई जानने के बाद भी यदि आप रावण का पुतला जलाते हैं तो आप अपने पूरखों का सीधे तौर पर अपमान कर रहे हैं।
*राम, रावण व रामायण क्या है?*
पुष्यमित्र शुंग के दरबारी कवि पंडित अग्नि उर्फ वाल्मीकि को ब्राह्मणवादी धर्म की अब्राह्मणवादी धर्म (बौद्धधम्म) पर विजयी की घटना धार्मिक दृष्टिकोण से लिखने की जिम्मेदारी दी गई और उस पंडित अग्नि ने काल्पनिक रामायण में पुष्यमित्र शुंग को *राम और दस मौर्य राजाओं को दशानन यानि दस सिर वाला यानि रावण* बनाकर सीताहरण पर आधारित एक ग्रंथ लिख दिया, जबकि उक्त घटना में किसी भी महिला की कोई भूमिका नहीं है। आप लोग उस काल्पनिक ग्रंथ को *रामायण* के नाम से जानते हैं जिसमें पुष्यमित्र शुंग को राम बताकर अधर्म को हराने वाला धर्म का रक्षक बताया गया और इसी ग्रंथ में भारत के मूलनिवासी एससी, एसटी, ओबीसी के पूर्वजों को रावण बताया गया है।
*मगर दशहरे का संबंध ना तो राम-रावण युद्ध से है और ना सीताहरण से है, इसका मतलब तो सीधा-सीधा बौद्धकालीन मौर्य साम्राज्य के अंत करने से है।*
इसी प्रकार एक और ब्राह्मणवादी ग्रंथ में कंस को 07 भांजों की हत्या करने वाला बताया गया है, तो फिर कंस के पुतले हर वर्ष क्यों नहीं जलाए जाते हैं? इसका आश्य यह है कि दशहरा देश के मूलनिवासियों को हराकर गुलाम बनाने का संकेत है, ना कि बुराई।
*असुर यानि राक्षक कौन हैं?*
सुर और असुर अर्थात जो सुरापान (शराब) करें, वो सुर और जो सुरापान ना करें, वो असुर। जो लोग हमारे मूलनिवासियों की रक्षा करते थे अर्थात सुरों यानि ब्राह्मणवादियों से अपने लोगों की रक्षा करते थे अर्थात जो हमारे रक्षक हुआ करते थे, उन्हें ही राक्षक बताया गया है, जबकि मानव इतिहास में आज तक कोई भी व्यक्ति सींग वाला पैदा नहीं हुआ है तो फिर ब्राह्मणों ने कौनसे राक्षक सींग वाले बताए हैं? हमारे पूरखों को असुर या राक्षक बताना कोरी कल्पना है।
ताजा उदाहरण से समझने की कोशिश करें कि आरएसएस प्रमुख विदेशी ब्राह्मण मोहन भागवत ने अपने एक बयान में कहा है कि बुद्ध और अशोक राष्ट्रविरोधी थे अर्थात हमारे पूर्वज राष्ट्रविरोधी थे और हमें अछूत, अनपढ़ तथा नालायक बताया जाता है।
जिस प्रकार से हमारे पूर्वजों को राष्ट्रविरोधी बताया जा रहा है, उसी प्रकार एक दिन हमारे उद्धारक बाबा साहब डॉ अम्बेडकर को भी ये विदेशी ब्राह्मण लोग रावण अर्थात राक्षस बता सकते हैं।
आज तो आप लोग बाबा साहब को रावण अर्थात राक्षस नहीं मानोगे क्योंकि आप लोग बाबा साहब के बारे में काफी जानते हों। मान लों, अगर ये मनुवादी बाबा साहब का लिखा हुआ संविधान खत्म कर दें और बाबा साहब को हमारी रक्षा करने के विरोध में राक्षक घोषित कर दें, जैसा कि हमारे पूर्वजों को किया है, तो आपकी संताने बाबा साहब को भी राक्षस अर्थात रावण मानने लग जाएंगी तो आप क्या उनको सच्चाई बताने के लिए शमशान से उठकर आओगे क्योंकि इतिहास को तोड़ना-मरोड़ना इन विदेशियों को अच्छी तरह से आता है।
*महामानव डॉ भीमराव अम्बेडकर साहब ने बौद्धधम्म "अशोक विजयादशमी" को ही क्यों ग्रहण किया?*
अब बात आती है कि डॉ अम्बेडकर साहब ने बौद्धधम्म ही क्यों ग्रहण किया और वो भी अशोक विजयादशमी को ही क्यों ग्रहण किया? तो इसके अनेक कारण और तथ्य हैं, परन्तु बाबा साहब ने बौद्धधम्म ग्रहण इसलिए किया क्योंकि जब बाबा साहब ने ब्राह्मणवादी धर्म ग्रंथों का अध्ययन किया तो उनमें देश के मूलनिवासियों के विरोध में सिर्फ और सिर्फ सजाएं और साजिशें ही पाई गई तथा जब बौद्धधम्म का अध्ययन किया तो उसमें मूलनिवासियों के पूर्वजों का समतामूलक समाज का समतावादी गौरवशाली इतिहास पाया गया, इसीलिए बाबा साहब ने बौद्धधम्म ग्रहण किया
और
दूसरी ओर केवल और केवल विजयादशमी को ही बाबा साहब ने बौद्धधम्म ग्रहण क्यों किया? तो उसका जवाब यह है कि 2500 साल बाद बाबा साहब ने दशहरे को वापस से *"अशोक विजयादशमी में परिवर्तित करने के लिए"* ही अशोक विजयादशमी को बौद्धधम्म ग्रहण किया ताकि बहुजन समाज के भावी पीढ़ी के शिक्षित अपने सच्चे इतिहास को जानकर अपने पूर्वजों के पुतले जलाना बंद करके अपने पूरखों के विजयी दिवस *"अशोक विजयादशमी"* को मनाने लगे व योजनाबद्ध तरीके से बौद्धधम्म की ओर आगे बढ़ सकें।
*अब आपकी जानकारी के लिए कि* अगर सम्राट अशोक बुरे होते या उनके पूर्वज या उनके वंशज बुरे होते तो सम्राट अशोक के विशालतम साम्राज्य के बौद्धकालीन प्रतीक चिन्ह *"धम्मचक्र (अशोकचक्र) व अशोकचिंह (चारों दिशाओं में शेरों वाला)"* राष्ट्रीय ध्वज पर, भारतीय संविधान पर, संसद पर, विधानसभाओं पर, न्यायालयों पर, कार्यालयों पर, मुद्रा पर, सेना पर और भारतीय परिपत्रों पर क्यों होते?
और
अगर राम, सम्राट अशोक की तरह समतावादी होता या उसके राज्य के कोई प्रेरणादायक प्रतीक चिन्ह उपलब्ध होते तो ये ब्राह्मणवादी बौद्धकालीन अशोकचिन्हों को राष्ट्रीय प्रतीक नहीं बनाने देते।
*बोद्धिसत्व बाबा साहब ने 22 प्रतिज्ञाएं क्यों रची?*
14 अक्टूबर, 1956 को अशोक विजयादशमी पर जब बाबा साहब ने बौद्धधम्म ग्रहण किया तो उससे पहले बाबा साहब ने 1935 से लेकर 1956 तक बौद्धधम्म का बहुत गहन अध्ययन किया था और उसे स्वीकार करने में आने वाली अड़चनों को दूर करने के लिए बाबा साहब ने बहुत गहन चिंतन-मनन किया था कि बहुजन समाज के भोलेभाले लोगों को भविष्य में ब्राह्मणवादी फिर से अपने ईश्वरीय मायाजाल में ना फंसा लें, इसके लिए बाबा साहब ने बहुत ही महत्वपूर्ण और सारगर्भित *"22 प्रतिज्ञाओं"* की रचना की थी और अपने लाखों अनुयायियों को उन प्रतिज्ञाओं से दीक्षित भी किया था तथा बौद्धधम्म ग्रहण करने के साथ इन प्रतिज्ञाओं को भी स्वीकार करना अनिवार्य किया था ताकि बौद्धधम्म ग्रहण करने के पश्चात कोई भी बौद्ध ब्राह्मणवादी मकड़जाल में ना फंस सके।
*इसीलिए आप सब से विशेष निवेदन है* कि चाहें आप बौद्धधम्म स्वीकार करें या ना करें, परन्तु अगर आप लोग बाबा साहब को अपना उद्धारक, मार्गदर्शक और आदर्श मानते हों, तो *अशोक विजयादशमी के अवसर पर सर्वप्रथम तथागत बुद्ध, सम्राट अशोक और बोद्धिसत्व बाबा साहब की तस्वीरों के समक्ष 05 मोमबत्तियां प्रज्वलित कर पुष्प अर्पित करें और अपने परिजनों के साथ इन 22 प्रतिज्ञाओं का वाचन जरूर करना।* यह बाबा साहब को आपकी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
*22 प्रतिज्ञाएं आपके लिए यहां पर उल्लेखित की जा रही हैं जो निम्नलिखित हैं :----*
*01.* मैं ब्रह्मा, विष्णु और महेश को कभी ईश्वर नहीं मानूंगा और न ही मैं उनकी पूजा करूंगा।
*02.* मैं राम और कृष्ण को कभी ईश्वर नहीं मानूंगा और न ही मैं उनकी पूजा करूंगा।
*03.* मैं गौरी, गणपति जैसे हिंदू धर्म के किसी देवी-देवता को नहीं मानूंगा और न ही उनकी पूजा करूंगा।
*04.* ईश्वर ने कभी अवतार लिया है, इस पर मेरा विश्वास नहीं है।
*05.* मैं ऐसा कभी नहीं मानूंगा कि तथागत बुद्ध विष्णु के अवतार हैं। ऐसे प्रचार को मैं पागलपन और झूठा समझता हूँ।
*06.* मैं कभी श्राद्ध नहीं करूंगा और न ही पिंडदान करवाऊंगा।
*07.* मैं बौद्धधम्म के विरुद्ध कभी कोई आचरण नहीं करूंगा।
*08.* मैं कोई भी क्रियाकर्म ब्राह्मणों के हाथों से नहीं करवाऊंगा।
*09.* मैं इस सिद्धांत को मानूंगा कि सभी इंसान एक समान हैं।
*10.* मैं समानता की स्थापना का यत्न करूंगा।
*11.* मैं बुद्ध के आष्टांग मार्ग का पूरी तरह पालन करूंगा।
*12.* मैं बुद्ध के द्वारा बताई हुई दस परिमिताओं का पूरा पालन करूंगा।
*13.* मैं प्राणी मात्र पर दया रखूंगा और उनका लालन-पालन करूंगा।
*14.* मैं चोरी नहीं करूंगा।
*15.* मैं झूठ नहीं बोलूंगा।
*16.* मैं व्यभिचार नहीं करूंगा।
*17.* मैं शराब नहीं पीऊंगा।
*18.* मैं अपने जीवन को बौद्धधम्म के तीन तत्वों अथार्त प्रज्ञा, शील और करुणा पर ढालने का यत्न करूंगा।
*19.* मैं मानव मात्र के विकास के लिए हानिकारक और मनुष्य मात्र को ऊँच-नीच मानने वाले अपने पुराने हिंदू धर्म को पूर्णत: त्यागता हूँ और बौद्धधम्म को स्वीकार करता हूँ।
*20.* यह मेरा पूर्ण विश्वास है कि गौतम बुद्ध का धम्म ही सही धम्म है।
*21.* मैं यह मानता हूँ कि अब मेरा नया जन्म हो गया है।
*22.* मैं यह प्रतिज्ञा करता हूँ कि आज से मैं बौद्धधम्म के अनुसार आचरण करूंगा।
*अगर कोई मनुवादी यह तर्क देता है कि डॉ अम्बेडकर साहब किसी भी जगह गलत थे* तो साथियों, आप खुद ही एक बार विचार करों कि अगर बाबा साहब गलत होते तो बाबा साहब को ये मनुवादी देश का संविधान लिखने की जिम्मेदारी क्यों देते? अगर बाबा साहब गलत होते तो बाबा साहब को ये ब्राह्मणवादी भारत में बौद्धधम्म पुनर्जीवित क्यों करने देते? अगर बाबा साहब गलत होते तो बाबा साहब को ये मनुवादी भारतरत्न से सम्मानित क्यों करते?
और
आपकी जानकारी के लिए कि भारत की विदेशों में पहचान तथागत बुद्ध, सम्राट अशोक, बाबा साहब डॉ अम्बेडकर और देश के संविधान से ही है, किसी मनुवादी देवी-देवता या धार्मिक ग्रंथ से नहीं।
और हाँ, अगर बुराइयों के प्रतीकों के पुतले ही जलाने हैं तो इन्हीं के धार्मिक ग्रंथों में अनेक देवताओं और ऋषियों को दुराचारी बताया गया है, उनके पुतले जलाओं, देश के भ्रष्टाचारियों, बलात्कारियों, बलात्कारी राजनेताओं, बलात्कारियों का पक्ष लेने वाले राजनेताओं और बलात्कारी बाबाओं के पुतले जलाओं जिन पर बलात्कार व हत्याओं के एक से बढ़कर एक संगीन आरोप हैं....
*🙏धन्यवाद🙏*
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